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Sevika Sangham

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Welcome To Melbourne Mar Thoma Church

A Brief History of Mar Thoma Church Melbourne Parish

The early beginning and growth of the Mar Thoma Congregation in Melbourne may be viewed in the context of several Episcopal visits to Australia from 1970. A homegroup of the Mar Thoma people was formed after the visit of Bishop Thomas Mar Athanasious in 1980. Initially, the homegroup met once a year and then it became twice yearly on a regular basis in various homes for Bible study and fellowship. Later we moved to a church hall in Vermont and started conducting Divine Services.

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Worship Service

Sunday
 
July 27, 2025

Services

07:30 AM

Malayalam Holy Qurbana

Sunday Events





Lectionary Theme: Training for the Ministry of the Kingdom of God (Seventh Sunday after Pentecost)

  •   

    1. नबूकदनेस्सर बाबुल का राजा था। नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम पर आक्रमण किया और अपनी सेना के साथ उसने यरूशलेम को चारों ओर से घेर लिया। यह उन दिनों की बात है जब यहूदा के राजा यहोयाकीम के शासन का तीसरा वर्ष चल रहा था।

    2. यहोवा ने यहूदा के राजा यहोयाकीम को नबूकदनेस्सर के द्वारा पराजित करा दिया। नबूकदनेस्सर ने परमेश्वर के मन्दिर के साज़ो—सामान को भी हथिया लिया। नबूकदनेस्सर उन वस्तुओं को शिनार ले गया। नबूकदनेस्सर ने उन वस्तुओं को उस मन्दिर में रखवा दिया जिसमें उसके देवताओं की मूर्तियाँ थीं।

    3. इसके बाद राजा नबूकदनेस्सर ने अशपनज को एक आदेश दिया। (अशपनज राजा के खोजे सवकों का प्रधान था।) राजा ने अशपनज को कुछ यहूदी पुरूषों को उसके महल में लाने को कहा था। नबूकदनेस्सर चाहता था कि प्रमुख परिवारों और इस्राएल के राजा के परिवार के कुछ यहूदी पुरूषों को वहाँ लाया जाये।

    4. नबूकदनेस्सर को केवल हट्टे—कट्टे यहूदी जवान ही चाहिये थे। राजा को बस ऐसे युवक ही चाहिये थे जिनके शरीर पर कोई खरोंच तक न लगी हो और उनका शरीर किसी भी तरह के दोष से रहित हो। राजा सुन्दर, चुस्त और बुद्धिमान नौजवान ही चाहता था। राजा को ऐसे युवक चाहिये थे जो बातों को शीघ्रता से और सरलता से सीखने में समर्थ हों। राजा को ऐसे युवको की आवश्यकता थी जो उसके महल में सेवा कार्य कर सकें। राजा ने अशपनज को आदेश दिया कि उन इस्राएली युवकों को कसदियों की भाषा और लिपि की शिक्षा दी जाये।

    5. राजा नबूकदनेस्सर उन युवकों को प्रतिदिन एक निश्चित मात्रा में भोजन और दाखमधु दिया करता था। यह भोजन उसी प्रकार का होता था, जैसा स्वयं राजा खाया करता था। राजा की इच्छा थी कि इस्राएल के उन युवकों को तीन वर्ष तक प्रशिक्षण दिया जाये और फिर तीन वर्ष के बाद वे युवक बाबुल के राजा के सेवक बन जायें।

    6. उन युवकों में दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह शामिल थे। ये युवक यहूदा के परिवार समूह से थे।

    7. सो इसके बाद यहूदा के उन युवकों को अशपनज ने नये नाम रख दिये। दानिय्येल को बेलतशस्सर का नया नाम दिया गया। हनन्याह का नया नाम था शद्रक। मीशाएल को नया नाम दिया गया मेशक और अजर्याह का नया नाम रखा गया अबेदनगो।

    8. दानिय्येल राजा के उत्तम भोजन और दाखमधु को ग्रहण करना नहीं चाहता था। दानिय्येल नहीं चाहता था कि वह उस भोजन और उस दाखमधु से अपने आपको अशुद्ध कर ले। सो उसने इस प्रकार अपने आपको अशुद्ध होने से बचाने के लिये अशपनज से विनती की।

    9. परमेश्वर ने अशपनज को ऐसा बना दिया कि वह दानिय्येल के प्रति कृपालु और अच्छा विचार करने लगा।

    10. किन्तु अशपनज ने दानिय्येल से कहा, “मैं अपने स्वामी, राजा से डरता हूँ। राजा ने मुझे आज्ञा दी है कि तुम्हें यह भोजन और यह दाखमधु दी जाये। यदि तू इस भोजन को नहीं खाता है तो तू दुर्बल और रोगी दिखने लगेगा। तू अपनी उम्र के दूसरे युवकों से भद्दा दिखाई देगा। राजा इसे देखेगा और मुझ पर क्रोध करेगा। हो सकता है, वह मेरा सिर कटवा दे! जबकि यह दोष तुम्हारा होगा।”

    11. इसके बाद दानिय्येल ने अपने देखभाल करने वाले से बातचात की। अशपनज ने उस रखवाले को दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह के ऊपर ध्यान रखने को कहा हुआ था।

    12. दानिय्येल ने उस रखवाले से कहा, “कृपा करके दस दिन तक तू हमारी परीक्षा ले। हमे खाने को साग—सब्जी और पीने को पानी के सिवाय कुछ मत दे।

    13. फिर दस दिन के बाद उन दूसरे नौजवानों के साथ तू हमारी तुलना करके देख, जो राजा का भोजन करते हैं और फिर अपने आप देख कि अधिक स्वस्थ कौन दिखाई देता है। फिर तू अपने—आप यह निर्णय करना कि तू हमारे साथ कैसा व्यवहार करना चाहता है। हम तो तेरे सेवक हैं।”

    14. सो वह रखवाला दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल और अजर्याह की दस दिन तक परीक्षा लेते रहने के लिये तैयार हो गया।

    15. दस दिनों के बाद दानिय्येल और उसके मित्र उन सभी नौजवानों से अधिक हट्टे—कट्टे दिखाई देने लगे जो राजा का खाना खा रहे थे।

  •   

    17. तीन दिन बाद पौलुस ने यहूदी नेताओं को बुलाया और उनके एकत्र हो जाने पर वह उनसे बोला, “हे भाईयों, चाहे मैंने अपनी जाति या अपने पूर्वजों के विधि-विधानके प्रतिकूल कुछ भी नहीं किया है, तो भी यरूशलेम में मुझे बंदी के रूप में रोमियों को सौंप दिया गया था।

    18. उन्होंने मेरी जाँच पड़ताल की और मुझे छोड़ना चाहा क्योंकि ऐसाकुछ मैंने किया ही नहीं था जो मृत्युदण्ड के लायक होता

    19. किन्तु जब यहूदियों नेआपत्ति की तो मैं कैसर से पुनर्विचार की प्रार्थना करने को विवश हो गया। इसलिये नहींकि मैं अपने ही लोगों पर कोई आरोप लगाना चाहता था।

    20. यही कारण है जिससे मैं तुमसे मिलना और बातचीत करना चाहता था क्योंकि यह इस्राएल का वह भरोसा ही है जिसके कारण मैं ज़ंजीर में बँधा हूँ।”

    21. यहूदी नेताओं ने पौलुस से कहा, “तुम्हारे बारे में यहूदिया से न तो कोई पत्र ही मिला है, और न ही वहाँ सेआने वाले किसी भी भाई ने तेरा कोई समाचार दिया और न तेरे बारे में कोई बुरी बात कही।

    22. किन्तु तेरे विचार क्या हैं, यह हम तुझसे सुनना चाहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि लोग सब कहीं इस पंथ के विरोध में बोलते हैं।”

    23. सो उन्होंने उसके साथ एक दिन निश्चित किया। और फिर जहाँ वह ठहरा था, बड़ी संख्या में आकार वे लोग एकत्र हो गये। मूसा की व्यवस्था और नबियों के ग्रंथों से यीशु के विषय में उन्हें समझाने का जतन करते हुए उसने परमेश्वर के राज्य के बारे में अपनी साक्षी दी और समझाया। वह सुबह से शाम तक इसी में लगा रहा।

    24. उसने जो कुछ कहा था, उससे कुछ तो सहमत होगये किन्तु कुछ ने विश्वास नहीं किया।

    25. फिर आपस में एक दूसरे से असहमत होते हुए वे वहाँ से जाने लगे। तब पौलुस ने एक यह बात और कही, “यशायाह भविष्यवक्ता के द्वारा पवित्र आत्मा ने तुम्हारे पूर्वजों से कितना ठीक कहा था,

    26. ‘जाकर इन लोगों से कह दे: तुम सुनोगे, पर न समझोगे कदाचित्! तुम बस देखते ही देखते रहोगे पर न बूझोगे कभी भी!

    27. क्योंकि इनका ह्रदय जड़ता से भर गया कान इनके कठिनता से श्रवण करते और इन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली क्योंकि कभी ऐसा न हो जाए कि ये अपनी आँख से देखें, और कान से सुनें और ह्रदय से समझे, और कदाचित् लौटें मुझको स्वस्थ करना पड़े उनको।’

    28. “इसलिये तुम्हें जान लेना चाहिये कि परमेश्वर का यह उद्धार विधर्मियों के पास भेज दिया गया है। वे इसे सुनेंगे।”

    29.

    30. वहाँ किराये के अपने मकान में पौलुस पूरे दो साल तक ठहरा। जो कोई भी उससे मिलने आता, वह उसका स्वागत करता।

  •   

    1. जहाँ तक तुम्हारी बात है, मेरे पुत्र, यीशु मसीह में प्राप्त होने वाले अनुग्रह से सुदृढ़ हो जा।

    2. बहुत से लोगों की साक्षी में मुझसे तूने जो कुछ सुना है, उसे उन विश्वास करने योग्य व्यक्तियों को सौंप दे जो दूसरों को भी शिक्षा देने में समर्थ हों।

    3. यातनाएँ झेलने में मसीह यीशु के एक उत्तम सैनिक के समान मेरे साथ आ मिल।

    4. ऐसा कोई भी, जो सैनिक के समान सेवा कर रहा है, अपने आपको साधारण जीवन के जंजाल में नहीं फँसाता क्योंकि वह अपने शासक अधिकारी को प्रसन्न करने के लिए यत्नशील रहता है।

    5. और ऐसे ही यदि कोई किसी दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेता है, तो उसे विजय का मुकुट उस समय तक नहीं मिलता, जब तक कि वह नियमों का पालन करते हुए प्रतियोगिता में भाग नहीं लेता।

    6. परिश्रमी कामगार किसान ही उपज का सबसे पहला भाग पाने का अधिकारी है।

    7. मैं जो बताता हूँ, उस पर विचार कर। प्रभु तुझे सब कुछ समझने की क्षमता प्रदान करेगा।

    8. यीशु मसीह का स्मरण करते रहो जो मरे हुओं में से पुरर्जीवित हो उठा है और जो दाऊद का वंशज है। यही उस सुसमाचार का सार है जिसका मैं उपदेश देता हूँ

    9. इसी के लिए मैं यातनाएँ झेलता हूँ। यहाँ तक कि एक अपराधी के समान मुझे जंजीरों से जकड़ दिया गया है। किन्तु परमेश्वर का वचन तो बंधन रहित है।

    10. इसी कारण परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिये मैं हर दुःख उठाता रहता हूँ ताकि वे भी मसीह यीशु में प्राप्त होने वाले उद्धार को अनन्त महिमा के साथ प्राप्त कर सकें।

    11. यह वचन विश्वास के योग्य है कि: यदि हम उसके साथ मरे हैं, तो उसी के साथ जीयेंगे,

    12. यदि दुःख उठाये हैं तो उसके साथ शासन भी करेंगे। यदि हम उसको छोड़ेंगे, तो वह भी हमको छोड़ देगा,

    13. हम चाहे विश्वास हीन हों पर वह सदा सर्वदा विश्वसनीय रहेगा क्योंकि वह अपना इन्कार नहीं कर सकता। स्वीकृत कार्यकर्ता

  •   

    31. सो यीशु उन यहूदी नेताओं से कहने लगा जो उसमें विश्वास करते थे, “यदि तुम लोग मेरे उपदेशों पर चलोगे तो तुम वास्तव में मेरे अनुयायी बनोगे।

    32. और सत्य को जान लोगे। और सत्य तुम्हें मुक्त करेगा।”

    33. इस पर उन्होंने यीशु से प्रश्न किया, “हम इब्राहीम के वंशज हैं और हमने कभी किसी की दासता नहीं की। फिर तुम कैसे कहते हो कि तुम मुक्त हो जाओगे?”

    34. यीशु ने उत्तर देते हुए कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। हर वह जो पाप करता रहता है, पाप का दास है।

    35. और कोई दास सदा परिवार के साथ नहीं रह सकता। केवल पुत्र ही सदा साथ रह सकता है।

    36. अतः यदि पुत्र तुम्हें मुक्त करता है तभी तुम वास्तव में मुक्त हो। मैं जानता हूँ तुम इब्राहीम के वंश से हो।

Our Project

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Melbourne Mar Thoma Development Fund

The ‘Melbourne Mar Thoma Development Fund’ was constituted in August 2012. The fund aims to purchase land or buildings for setting up a center involving facilities for retreats and homes for the elderly which are for members of the Mar Thoma Church, Melbourne.

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The Salvation Army For Generous Support

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Basket Brigade- Melbourne

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Led by Karunya

Date : Saturday July 19th 2025
Time : 4:30 PM
Venue : MMTC, Parkville

 

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For where two or three gather in my name, there am I with them. Matthew 18:20

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The motto of the organization is that every member of our church should be a missionary and need to spread the love of God and the light of the gospel to the world around us.

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Mar Thoma Suvishesha Sevika Sanghom is the women's organization of Mar Thoma Church that was established with the purpose of providing

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